माँ का सपना था बेटा गरीबो की गरीबी समझे, 25 सालो से मिर्गी रोगियों का इलाज करते है डॉ. नगेंद्र शर्मा

माँ का सपना था बेटा गरीबो की गरीबी समझे, 25 सालो से मिर्गी रोगियों का इलाज करते है डॉ. नगेंद्र शर्मा
Khushbu rajput JHBNEWS टीम,सूरत 2025-10-19 16:03:58

कहते है डॉक्टर भगवान का रूप होते, लेकिन बहुत कम डॉक्टर है जो इस पेशे को निभाते है, जो फ्री में लोगो की सेवा करते हो। लेकिन डॉक्टर नगेंद्र गरीबों के लिए भगवान का रूप है। जो पिछले 25 सालों से मरीजों को निशुल्क सेवा कर रहे हैं, डॉक्टर नगेंद्र मिर्गी के मरीज़ों की सेवा और चिकित्सा के लिए निःशुल्क सेवाएं दे रहे है।

डॉ. नगेंद्र शर्मा जो राजस्थान के जोधपुर के है उनका जन्म 1955 में रतनगढ़-चूरू के एक गाँव में हुआ। डॉ. नगेंद्र का बालपन गरीबी और अभावो से गुजरा है. डॉक्टर शर्मा बताते है की 5 साल तक एक असाध्य बीमारी से ग्रसित रहने के बाद उनकी माँ की मृत्यु हो गई। पिता रेलवे में मेल सर्विस में चपरासी थे उनकी सैलरी उस समय 25 से 50 रुपए के बीच थी, जिसके वजह से उनकी माता जी की मौत हो गई.           

उनकी माता की अंतिम इच्छा थी की वो एक सच्चे और ईमादार डॉक्टर बने. उनकी माता जी ने अपने अंतिम समय में नगेंद्र के पिता और उन्हें बुलाकर कहा की डॉक्टर के लापरवाही के वजह से मेरी बीमारी का पता देर में चला. वह चाहती थी की नागेंद्र पढ़ाई कर ऐसा डॉक्टर बने जो गरीब की गरीबी को समझे और किसी भी मरीज़ के साथ धोखाधड़ी न करे या पैसा बनाने के लिए पेशे का गलत इस्तेमाल न करे। नगेंद्र आगे बताते है की उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण उन्होंने डॉक्टरी का सपना देखना छोड़ दिया । उन्होंने सोचा की अपना सपना छोड़कर पिताजी का सहारा बने लेकिन उनके पिता ने कहा की अपने सपने को पूरा करो और मेडिकल की तयारी करो. पिता की मेहनत और प्रोत्साहन से उनका सिलेक्शन मेडिकल में हुआ. 

साल 1987 में सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज, केईएम हॉस्पिटल, मुंबई से एम सीएच (न्यूरोसर्जरी) करने के बाद डॉ. नगेंद्र वहीं असिस्टेंट प्रोफेसर के पद संभाला। उसके बाद साल 1989 में पश्चिमी राजस्थान में पहली बार डॉ. नगेंद्र ने ही न्यूरोसर्जरी ब्रांच की स्थापना की। उसके बाद उन्होंने गाँव से आये कुछ रोगियों से बात की तब उन्हें पता चला कि इलाज महंगा होने की वजह से वे पूरा इलाज नहीं करा पाते हैं तब 28 फरवरी, 1999 में उन्होंने निःशुल्क मिर्गी कैम्प की शुरुआत की। अब तक 260 से ज़्यादा कैम्प हुए हैं। इस दौरान 90,000 से अधिक मरीज़ मिर्गी जैसी बीमारी से पूर्ण रूप से स्वस्थ हुए हैं।