Jolly LLB 3 Movie Review: अक्षय कुमार-अरशद खान Jolly LLB देखने लायक है या नहीं?

Jolly LLB 3 Movie Review: अक्षय कुमार-अरशद खान Jolly LLB देखने लायक है या नहीं?
Shubham Pandey JHBNEWS टीम,सूरत 2025-09-19 17:05:34

निर्देशक सुभाष कपूर अपनी लोकप्रिय कोर्टरूम फ्रैंचाइज़ी जॉली एलएलबी 3 के साथ एक और कदम आगे बढ़ा रहे हैं। इस बार, सबसे बड़ा आकर्षण दो जॉली के बीच टकराव है। अक्षय कुमार (Jolly Mishra) और अरशद वारसी (Jolly Tyagi) एक ही कोर्टरूम में आमने-सामने हैं। हास्य, व्यंग्य, भावना और एक सामाजिक संदेश का ऐसा मिश्रण दर्शकों को अंत तक फिल्म देखने के लिए मजबूर कर देता है।

जॉली एलएलबी  

2013 में रिलीज़ हुई पहली "Jolly LLB" में अभिनेता अरशद वारसी ने वकील जॉली का किरदार इतनी खूबसूरती से निभाया था कि दर्शकों ने उसे खूब पसंद किया था। हालाँकि, 2017 में आई "जॉली एलएलबी 2" में उनकी जगह अभिनेता अक्षय कुमार को ले लिया गया। उस समय अरशद नाराज़ हुए थे और उन्होंने साफ़ कह दिया था कि मेकर्स एक "बड़ा स्टार" चाहते थे। इस बदलाव से चर्चा और निराशा दोनों हुई। अब, "जॉली एलएलबी 3" ने इसमें और इज़ाफ़ा कर दिया है। दोनों कलाकारों को एक ही फ्रेम में कास्ट करके निर्देशक ने न सिर्फ़ पुराने विवाद को पीछे छोड़ दिया है, बल्कि इसे फ़िल्म की सबसे बड़ी ताकत भी बना दिया है।

जॉली एलएलबी 3 (Jolly LLB 3) की कहानी

यह एक किसान परिवार की कहानी है। एक किसान अपनी ज़मीन बचाने की कोशिश करता है, लेकिन ताकतवर लोगों और भ्रष्ट नेताओं के दबाव में उसे आत्महत्या करने पर मजबूर होना पड़ता है। उसकी विधवा (सीमा बिस्वास) न्याय पाने के लिए अदालत जाती है। अदालत में, जॉली मिश्रा (अक्षय कुमार) और जॉली त्यागी (अरशद वारसी) शुरू में अलग-अलग पक्षों से आमने-सामने होते हैं। बाद में, उन्हें साथ मिलकर काम करने के लिए मजबूर किया जाता है, जिससे बहस और भी मनोरंजक हो जाती है। फिल्म किसानों के मुद्दे को हास्य और व्यंग्य के साथ भी पेश करती है। कहानी का मुख्य संदेश "जय जवान, जय किसान" है, जो किसानों और सैनिकों के महत्व पर प्रकाश डालता है।

जॉली एलएलबी 3 समीक्षा

अक्षय कुमार (Akshay Kumar) ने जॉली मिश्रा (Jolly Mishra) का किरदार ऊर्जा और आत्मविश्वास के साथ निभाया है। अरशद वारसी, हमेशा की तरह, सहज और स्वाभाविक हैं। सीमा बिस्वास एक किसान की विधवा के किरदार में भावनात्मक गहराई लाती हैं और उनका अभिनय फिल्म की जान बन जाता है। जज त्रिपाठी के रूप में सौरभ शुक्ला अदालत में संतुलन और मनोरंजन दोनों लाते हैं। राम कपूर, जो इस बार वकील की भूमिका में नज़र आ रहे हैं, हर दृश्य में अपनी ताकत का इस्तेमाल करते हैं। उनकी संवाद अदायगी और मौजूदगी तर्कों को और भी तीखा बना देती है।

गजराज राव फिल्म का सबसे बड़ा सरप्राइज हैं। उन्होंने एक भ्रष्ट उद्योगपति का किरदार इस तरह निभाया है कि उनके चेहरे के हाव-भाव और संवाद अदायगी दर्शकों को लंबे समय तक याद रहेगी। शिल्पा शुक्ला भी एक छोटे लेकिन प्रभावशाली किरदार में अपनी छाप छोड़ती हैं। हालाँकि, अमृता राव और हुमा कुरैशी फिल्म में सिर्फ़ नज़र आती हैं। दोनों ही किरदारों का कहानी में कोई खास योगदान या गहराई नहीं है।

सुभाष कपूर व्यंग्य और हास्य के ज़बरदस्त मिश्रण के साथ एक कोर्टरूम ड्रामा पेश करते हैं। वे अक्षय और अरशद के बीच की केमिस्ट्री को बनाए रखते हैं और किसानों के मुद्दे को संवेदनशीलता से उठाते हैं। कैमरे का इस्तेमाल और तीखे संवाद दर्शकों को कोर्टरूम में डूबा हुआ महसूस कराते हैं। हालाँकि, भावनात्मक हिस्सों में ज़रूरत से ज़्यादा मेलोड्रामा और कमज़ोर संगीत फ़िल्म की कमज़ोरियाँ साबित होते हैं। फिर भी, वे सामाजिक संदेश और मनोरंजन का अच्छा मिश्रण पेश करते हैं। फ़िल्म मज़बूत होने के साथ-साथ निराशाजनक भी है। कुछ दृश्य इतने ज़्यादा नाटकीय हैं कि यकीन करना मुश्किल हो जाता है कि वे असली हैं। इसके अलावा, फ़िल्म का संगीत भी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता।

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